Neeraj Chopra: the pride of the nation, India in Tokyo Olympic 2020

Neeraj Chopra: the pride of the nation, India in Tokyo Olympic 2020

दोस्तों आज की कहानी एक ऐसे लड़के की है जो बचपन में परिवार द्वारा प्यार व दुलार के कारण मोटापे में ग्रस्त हो गया था, मोटापे को कम करने के लिए ये लड़का कसरत करने लगा, घर वालों ने उसे दौड़ने की सलाह दी. उस लड़के ने दौड़ लगानी शुरू की, और दौड़ लगाते लगाते वहां तक पहूँच गया जहाँ पर पुरे देश की आँखें टिकी थीं, मतलब टोक्यो के ओलम्पिक में, वो भी शिखर पर. वो लड़का आज का हीरो है, जिसका नाम है नीरज चोपड़ा.

Neeraj Chopra

नीरज चोपड़ा (Neeraj Chopra) को शुरुआत में कबड्डी का बहुत शौक था. उनके गांव में कोई स्टेडियम तो था नहीं, ऐसे में Neeraj Chopra प्रैक्टिस करने के लिए गांव से 16-17 किलोमीटर दूर पानीपत के शिवाजी नगर स्टेडियम में जाने लगे.

Neeraj Chopra

हरियाणा के एक गरीब किसान के घर में पैदा हुए नीरज को ये गोल्ड भारत की झोली में करने में जीवन भर बहुत समस्या आई. खेल में उनकी रूचि बढ़ी किसी भी खेल के सामान के लिए बहुत पैसों की ज़रूरत पड़ती है, नीरज के पास इतने पैसे नहीं थे, लेकिन कहते हैं न कि जिसको करना है वो करके दिखाता है.

पानीपत के उसी स्टेडियम में जयवीर नाम का एक दोस्त भाला फेंक (Javelin Throw) की प्रैक्टिस करने के लिए आता था. एक दिन ऐसे खेल-खेल में जयवीर ने नीरज चोपड़ा से भाला फेंकने के लिए कहा. जब नीरज चोपड़ा ने भाला फेंका तो जयवीर उनसे काफी प्रभावित हुए और उन्होंने नीरज चोपड़ा को भाला फेंकने की प्रैक्टिस करने की सलाह दे दी. बस फिर क्या था, नीरज चोपड़ा ने भाला फँकने की शुरुआत कर दी, लेकिन 80 किलो के वज़न के साथ भाला  फेंकना मुश्किल था. खैर नीरज ने हिम्मत नहीं हारी महज दो महीने में 20 किलो वजन कम कर लिया.

वजन कम करने के बाद नीरज चोपड़ा के सामने समस्या थी जेवलिन (भाला) खरीदने की. दरअसल उस समय एक अच्छी क्वालिटी की जेवलिन एक लाख रुपए से भी ज्यादा की आती थी, जोकि उनके परिवार के लिए खरीदना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था. ऐसे में नीरज चोपड़ा ने सस्ती सी भाला खरीदी और उससे प्रैक्टिस करने लगे. दिन में 7-7 घंटे तक प्रैक्टिस कर नीरज चोपड़ा (Neeraj Chopra) एक बेहतरीन खिलाड़ी बने.

खेतीबाड़ी से घर परिवार का खर्च चलता था, वो अक्सर खेतों में जा के पिता और चाचा की मदद करते. Neeraj Chopra चंडीगढ़ में पढाई भी करते, स्टेडियम वो बस से ही जाते. कभी कभी पैसा जेब में ना होने के कारण किराया बचाने के लिए लिफ्ट लेकर स्टेडियम पहुंचा करते थे.

2012 में लखनऊ में जूनियर नेशनल लेवल पर आयोजित प्रतियोगिता में पहली बार भाला फेंककर रिकॉर्ड बनाया, उसके बाद यूक्रेन, पोलैंड, फिर एशियन चैंपियन-शिप और अब खेलों के महा संग्राम मतलब टोक्यो ओलंपिक में हिंदुस्तान को पहला गोल्ड मेडल दिलाने वाले Neeraj Chopra पर पूरे देश का नाज है. उन्होंने अपने शानदार प्रदर्शन से पूरे देश को ही नहीं दुनिया को रोमांचित कर दिया.

इनको आज सबलोग जानते हैं, कठिन परिश्रम और लगन ने आज समूचे भारत को गौरान्वित किया है. तारीफें सब कर रहे हैं, सोशल मीडिया में शुभकामनाओं  की बाढ़ सी आ गई है, हर भारतीय और खेल प्रेमी खुश है, लेकिन किसी को ये नहीं पता की इस सोने को भारत की झोली में डालने वाले नीरज ने अपना कितना सोना कुर्बान कर दिया.

जब सफलता की ख्वाहिश आपको सोने ना दे, जब मेहनत के अलावा और कुछ अच्छा ना लगे, जब लगातार काम करने के बाद थकावट ना हो, समझ लेना सफलता का नया इतिहास रचने वाला है.

2017 के नवम्बर महीने में Neeraj Chopra द्वारा लिखे गए इस कथन को आज स्वयं Neeraj Chopra ने सही साबित करते हुए दिखा दिया है की कैसे इतिहास में अपना स्वर्ण अक्षरों से लिखवाया जाता है.


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