पंजाब का partition मानव इतिहास का एक बहुत ही भयानक और डरावना सच था. यह मानव इतिहास के सबसे क्रूर दिनों की याद को ताज़ा करता है. 1947 का वो दौर यह बताता है कि मानव इतिहास में या आने वाले दिनों में मनुष्य का कोई भी मोल नहीं है, मनुष्य केवल राज करने का खिलौना भर है. सत्ता भोग के लिए फिर चाहे देश के टुकड़े करने हो या फिर इंसानों के टुकड़े, सब चलता है. कभी कभी 1947 की Black एंड White तस्वीरें जिस्म के अन्दर कपकपीं पैदा कर देती हैं.
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Partition: वो दर्द की जिसमें औरतों की चीखों ने पूरे भारतीय ऊप महादीप को हिला कर रख दिया था, वो दर्द कि जिसमें बच्चों की सिस्कारियों ने नदियों के पानी रोक दिए थे.
एक बच्चा सा था जब मैं यूपी के छोटे से गाँव से पंजाब आया तो अपने आप को यहाँ के माहौल में ढालने में वक़्त लगा. पिछले 12 सालों से पंजाब में हूं, यहाँ के लोगों में अपना पन मिलेगा, लेकिन जब भी किसी गाँव में जाता हूँ तो बटवारे के दर्द को महसूस करता हूँ. अन्दर से कपकपी कर देने वाली वो कहानियां याद आने लगती हैं, बिलखते बच्चों की आवाजें ऐसे सुनाई देती हैं मानो वो कह रही हों की हमारी क्या गलती थी हम तो मासूम थें. गाँव में बूढ़े लोगों के चेहरे पे पड़ी झुर्रोयाँ बटवारे के उस दर्द को अभी भी बयां करती हैं.
एक देश के दो टुकड़े तो एक बंद कमरे में कर दिया गया था, मगर बंद कमरे के बाहर इंसानियत का जो बलात्कार किया गया वो शायद आज भी यहाँ के लोग ना भूल पाएं. आज भी भारतीय पंजाब के बहुत से लोग पाकिस्तान में रहते हैं, पाकिस्तान पंजाब के बहुत से लोग भारतीय पंजाब में रहते हैं.
कैसे कुछ लोगों ने सत्ता भोग के लिए एक देश के दो टुकड़े कर दिए एक समाज को टुकड़ों में बांट दिया और फिर हत्या, लूटपाट, बलात्कार का नंगा नाच नचाया गया. ट्रेन में लाशों का भर के पाकिस्तान से भारत आना और भारत से पाकिस्तान जाना महीनों चलता रहा. मशहूर कहानीकार कुलवंत सिंह ने भी अपनी एक किताब “A Train to Pakistan” में इसके बारे में लिखा है कि अंबाला कैंट रेलवे स्टेशन पे एक ट्रेन लाहौर से आई, जिसमें सिर्फ लाशें थी. और फिर वैसी ही ट्रेन लाशों से भर के फिर अम्बाला कैंट से लाहौर रेलवे स्टेशन भेजी गई.
लाशों के इस खेल में इंसानों की क्या गलती थी? कहने का तात्पर्य सिर्फ इतना है कि मानव जाति को तहस-नहस करने और अपना उल्लू सीधा करने के लिए पूरे पंजाब को नर्क बना दिया था।
मैं अभी भी बंटवारे का वह दर्द सुन सकता हूं, महसूस कर सकता हूँ. मैं अभी भी पंजाब के खेत खलियानों व पेड़ों से रिसते खून को देख सकता हूँ. मैं पुराने घरों की कराहती हुई दीवारों को सुन सकता हूँ. मैं यहाँ के दादा और दादियों के झर्री वाले चेहरों से उस दर्द को पढ़ सकता हूँ. गाँव के पुराने ढके हुए कुएं अभी भी अपना दुःख सुनाने को तैयार हैं, आज भी मैं जब पंजाब के गांव में जाता हूं तो वहां के खेत खलियान, वहां के कच्चे मकान, पुराने चबूतरे, खंडर इमारतें, चींख चींख कर अपने होने का एहसास दिलाते हैं. यही हाल शायद पाकिस्तान के पंजाब का भी है, और क्यों नहीं हो, वो भी तो पंजाब ही था, वहां भी ऐसे ही लोग थें जैसे यहाँ पे हैं.
Source: The Times
एक रिपोर्ट की मानें तो बंटवारे के दौरान लगभग 20 लाख लोग मारे गए, लेकिन ये आंकड़ा झुटा लगता हैं सच्चाई इसके विपरीत है. मौत का आंकड़ा तो 50 लाख से ऊपर था, जबकि बलात्कार और लूटपाट की कोई गिनती ही नहीं थी, और सच्चाई ये भी है कि इस त्रासदी से लगभग एक करोड़ लोग प्रभावित हुए थे.
सर जेम्स अपनी किताब में लिखते हैं कि सर फ्रेंडशिप रोड़ी जो कि उस समय गवर्नर ऑफ पंजाब थे उनके अनुसार मारे गए लोगों की संख्या लगभग 50 लाख थी.
Image Sources: Sikh Expoये मरने वाले दोनों तरफ के थें, और सब इंसान ही थें, और इन इंसानों में बच्चों, बूढों और औरतों की संख्या काफी ज्यादा थी. मानव इतिहास नें अनगिनत नरसंहार देखे मगर ये एक ऐसा प्रायोजित नरसंहार था जिसका कोई दोषी नहीं निकला.
माउंटबेटन ने कहा था की अलग अलग धर्मों के लोगों को शान्ति से रहने के लिए बंटवारा ज़रूरी है, मगर अफ़सोस की उनके इस बंटवारे ने सिंध नदी के पानी को लाल कर दिया था.
ब्लॉग में दिखाई गई तस्वीरों का मतलब केवल इतना है कि आप अपने आने वाली पीढ़ी को दिखाएँ की सत्ता का नशा मानवता की बलि मांगता है.